गोबर एवं कचरे से जैविक खाद तैयार करने की विधि
इस विधि में एक बड़ा गड्डा जिसका आकार करीब 12 इंच लम्बाई , 12 इंच चौडाई, 2.5 इंच गहराई का बनाया जाता है | उसे ईट के दीवारों से चार बराबर भागों में बांट दिया जाता है | इस प्रकार चार गड्डे बनते है | पुरे गड्डे के चारो तरफ अन्दर से एक ईट की दीवार की विभाजन दीवार 2 ईंटो (9 इंच) की होती है ताकि मजबूत रहे, इन विभाजक दीवारों पर समान दुरी पर हवा के वहन एवं केंचुओं के घुमने हेतु छिद्र छोड़े जावे |
यदि यह चरों गड्डे पेड़ की छावं में बनाये गए है तब अतिरिक्त शेड की जरुरत नही अन्यथा धूप एवं वर्षा के सीधे प्रभाव से बचने के लिए इसके ऊपर कच्चा शेड बनाया जावे | एक बार चार गड्डे बन जाने के बाद कई वर्षों तक प्रति वर्ष में करीब 3 – 4 टन खाद प्राप्त किया जा सकता है |
गड्डे भरने की विधि
- इस तंत्र में प्रत्येक गड्डे को एक के बाद एक भरते है अर्थात पहले एक महीने तक पहला गड्डा भरे | यह भर जाने के बाद पुरे कचरे को गोबर पानी से अच्छी तरह भिगोकर काले पालीथीन से ढंक देवें ताकि उसके विघटन की प्रक्रिया शुरू हो जाये | इसके बाद कचरा दुसरे गड्डे में एकत्र करना शुरू कर देवें | दुसरे माह बाद जब दूसरा गड्डा भर जाता है तब इस पर भी उसी प्रकार काला पालीथीन ढक देते है और कचरा तीसरे गड्ढे में एकत्र करना आरंभ करे |
- इस समय तक पहले गड्डे का कचरा अपघटित हो जाता है | एक दो दिन बाद पहले गड्डे की गर्मी काम हो जाए, तब उसमें 500 – 1000 केंचुएँ छोड़ दिए जावे और पुरे गड्डे को घास की पतली थर से ढंक दिया जाए | उसमें नमी बनाए रखना आवश्यक है अत: चार – पांच दिन के अंतर पर इसमें थोड़ा पानी देवें |
- इसी प्रकार 3 माह बाद जब तीसरा गड्डा कचरे से भर जाता है तब इसमे भी पानी से भिगोकर पालीथीन से ढंक देवें एवं चौथे गड्डे की गर्मी कम होती है तब उसमें पहले गड्डे के केंचुएँ अर्थात वर्मी कम्पोस्ट बनना आरंभ हो जाता है | चार माह बाद जब चौथा गड्डा भी कचरे व गोबर से भर जाये, तब उसे भी उसी प्रकार पानी से भिगोकर पालीथीन से ढंक देवें |
- इस प्रकार चार माह में एक के बाद एक चारों गड्डे भर जाते है | इस समय तक पहले गड्डे में जिसे भरकर 3 माह हो चुके है वर्मी कम्पोस्ट तैयार हो जाता है और उसके सारे केंचुएं दुसरे एवं तीसरे गड्डे में धीरे – धीरे बीच की दीवारों के छिद्रों द्वारा प्रवेश कर जाते है |
- अब पहले गड्डे से खाद निकलने की प्रक्रिया आरंभ की जा सकती है और खाद निकालने के बाद उसमें पुन: कचरा एकत्र करना शुरू करें इसके एक माह बाद दुसरे गड्डे से फिर तीसरे और चौथे इस प्रकार क्रमश: हर एक माह बाद एक गड्डे से खाद निकला जा सकता है व साथ – साथ कचरा भी एकत्र किया जा सकता है |
- इस चक्रिये पद्धति में चौथे महीने से बारहवे महिनी तक हर महीने करीब 500 किलो खाद, इस प्रकार 8 महीने में 4000 किलो खाद रोज एकत्रित होने वाले थोड़े – थोड़े कचरे के उपयोग से बनाया जा सकता है |
कृषकों के दृष्टि से लाभ
- भूमि की उपजाऊ क्षमता में बृद्धि होती है |
- सिंचाई के अंतराल में बृद्धि होती है |
- रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होने के साथ काश्त लागत में कमी आती है |
- भूमि के जल स्तर में बृद्धि होती है |
- मिट्टी, खाद पदार्थ और जमीन में पानी के माध्यम से होने वाले प्रदुषण में न्कामी आती है |
- कचरे का उपयोग खाद बनाने में होने से बीमारियों में कमी होती है |
जैविक खाद / केंचुए खाद की विशेषताएँ
- इस खाद में बदबू ���ही होती है तथा मक्खी मच्छर भी नही बढ़ते है जिससे वातावरण स्वस्थ रहता है, इससे सूक्ष्म पोषक तत्वों के साथ – साथ नाइट्रोजन 2 से 3 प्रतिशत, फास्फोरस 1 से 1 %, पोटाश 1 से 2 प्रतिशत मिलता है |
- इस खाद को तैयार करने में प्रक्रिया स्थापित हो जाने के बाद एक से डेढ़ माह का समय लगता है |
- केंचुआ पूर्णत: तैयार होने पर 21 दिन में खाद तैयार कर देता है |
- प्रत्येक माह एक टन खाद प्राप्त करने हेतु 100 वर्गफुट आकार की नर्सरी बेड पर्याप्त होती है |
- केंचुआ खाद की केवल 2 टन मात्र प्रति हेक्टेयर आवश्यक है |