विश्व पर्यावरण दिवस
विश्व पर्यावरण दिवस पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण हेतु 5 जून को पूरे विश्व में मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र ने पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और सामाजिक जागृति लाने हेतु वर्ष 1972 में की थी।
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धरती के बढ़ते तापमान से परेशान सब हैं, वैज्ञानिक शोध पर शोध कर रहे हैं, दुनिया भर के नेता सालों से ग्रीन हाउस प्रभाव को लेकर बातें कर रहे हैं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़े-बड़े सम्मेलन हो रहे हैं, अरबों -खरबों रुपये खर्च हो रहे हैं, लेकिन धऱती का तापमान है कि एक डिग्री कम नहीं हो पा रहा है।
बुखार अच्छे भले व्यक्ति को बेचैन करने के लिए पर्याप्त है। बुखार में तपता इंसान बदहवास सा हो जाता है। एक बुखार आदमी के श्वसन तंत्र, उत्सर्जन तंत्र से लेकर दिमाग तक शरीर के किसी भी हिस्से को हानि पहुंचा सकता है। सामान्य मनुष्य का तापमान जैसे ही सैंतीस डिग्री सेल्सियस को पार करता है इंसान हवा, पानी और ठंडक पाने के लिए छटपटाने लगता है।
आदमी को बुखार हो तो डॉक्टर माथे पर गीली पट्टी रखने को कहते हैं, खुली हवा में बैठने को कहते हैं, यही नहीं उसके खानपान में भी ऐसी चीजें उपलब्ध करायी जाती हैं जिससे उसके शरीर की गर्मी कम हो।
यदि अनेक उपायों के बाद भी इंसान के शरीर का तापमान कम नहीं हो पाता तो उसे बचाना मुश्किल हो जाता है। बुखार जानलेवा होता है।
अबकी बार इस जानलेवा बुखार ने किसी इंसान को नहीं बल्कि इसके जीवन आधार को ही अपने चपेट में ले लिया है। मनुष्य के जीवन का आधार यह धरती बुखार से तप रही है और किसी डॉक्टर, वैज्ञानिक, सरकार किसी में अभी तक यह शक्ति नहीं दिखी है कि इस धरती के तापमान को कम कर पाये।
मौसम का एक डिग्री सेल्सियस गर्म या ठंडा होना तो सामान्य सी बात है। लेकिन जब बात पूरी धरती के औसत तापमान की हो तो इसमें मामूली सी बढ़ोतरी के ��यंकर परिणाम सामने आते हैं।
नासा के अनुसार धरती का औसत तापमान 0.8 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है। अब भी अगर नहीं संभले और धरती एक डिग्री और गर्म हुई तो पीने के पानी के लिए तरस जाएंगे लोग।
धरती जब बुखार से तपती है तो समुद्र का पानी उबलने लगता है, रिपोर्टस बताती हैं कि समुद्र में आक्सीजन कम हो रही है, ग्लेशिय़र पिघल रहे हैं, हरे-भरे क्षेत्र रेगिस्तान में बदल रहे हैं और इस तबाही को ये धरती पिछले कई सालों से भोग रही है, देख रही है। 1930 में अमेरिका के नेब्रास्का का हरियाली से भरा क्षेत्र रेत के ढेर में बदल चुका है। 2005 में भूमध्य रेखा के पास साफ पानी के अनेक स्रोत सूख गये हैं।
अब यदि धरती का बुखार नहीं रुका और एक डिग्री और बढ़ गया तो वैज्ञानिकों का अनुमान है कि समुद्र का जलस्तर छह मीटर बढ़ जाएगा। यानी हिंद महासागर में स्थित मालद्वीप जो सागर से सिर्फ डेढ़ मीटर ऊपर है उसके बचने की संभावना तो ना के बराबर दिख रही है।
सवाल ये हैं जब खतरा इतना भयंकर है, दुनिया के देश, वहां की सरकारें और वहां के लोग इतने लापरवाह क्यों है? जाहिर है सबको लगता है पड़ोसी के घर में बुखार से कोई तपे तो हमें क्या, उसका ख्याल वो रखे, हमारा काम तो सिर्फ हाल-चाल पूछ कर औपचारिकता पूरी करना है। वो ये नहीं जानता कि बुखार संक्रामक भी हो सकता है, तेजी से फैल सकता है पीड़ित के बाद सबसे पहले वो पड़ोसी को चपेट में लेता है। उसी तरह इस धरती को लोगों ने पड़ोसी का बीमार बच्चा समझ कर छोड़ दिया है जबकि धरती पड़ोसी की जिम्मेदारी नहीं है हर इंसान के जीवन का हिस्सा है।
तो फिर इसका उपचार क्या है? तो बुखार का बरसों से एक ही घरेलू और कारगर उपाय है और वो है माथे पर गीली पट्टी और ये पट्टी तब तक रखो जब तक तापमान उतर ना जाये।
अब इस धऱती के माथे पर गीली पट्टी रखे कौन? धऱती को खुली हवा कैसे मिले? धरती को प्रदूषण से कैसे बचाये? धरती को भोजन में क्या दे इसके सारे अंगों को ठंडक प्राप्त हो?
जिस तरह डॉक्टर सिर्फ इलाज की पर्ची लिख सकता है, नर्स / कंपाउंडर इंजेक्शन लगा सकते हैं मदद कर सकते हैं लेकिन मरीज की देखभाल तो चौबीसों घंटे घर वालों को, परिवार वालों को ही करनी पड़ती है तब जाकर उतरता है एक सामान्य आदमी का बुखार।
उसी तरह वैज्ञानिकों ने बता दिया है, पर्यावरण विषेषज्ञों ने, सरकारों ने नर्स और कम्पाउंडर बन कर जन -जन तक जागरूकता भी पहुंचा दी है लेकिन जब तक इस धरती पर ऱहने वाला एक- एक आदमी गीली पट्टी लेकर नहीं निकलेगा धरती का तापमान कम करने के प्रयास अपर्याप्त हैं।
धरती के लिए गीली पट्टी का अर्थ है पेड़ लगाना, धरती को खुली हवा दिलाने का अर्थ है हर तरह से प्रदूषण को रोकना, धरती को ठंडक देने का अर्थ है नदियों में गंदा पानी और रसायन जाने से रोकना, धऱती को पौष्टिक भोजन देने से अर्थ है उसकी मिट्टी को प्राकृतिक खाद से उपजाऊ बनाना और कृत्रिम खाद और रसायन से बचाना।
और जान लीजिए वर्तमान परिस्थितियों में धऱती के बुखार को उतारने का यह मात्र एक प्रयास है, धरती का बुखार इतना बेकाबू हो चुका है कि इस बात की कोई गारंटी नहीं कि बुखार उतर ही जाये कुल मिलाकर मौत के मुहाने पर खड़ी है धरती, बचा सको तो बचा लो।
आओ संकल्प करे की पर्यावरण को साफ़ सुथरा एवं हरा भरा रखेंगे और हमें पर्यावरण को सिर्फ सोशल मीडिया पर ही नहीं बचाना है, एक जागरूक नागरिक होने के नाते इसको वास्तिकता में साफ़ सुथरा एवं हरा भरा करना है |